संक्रमण का दायरा

देश में कोरोना विषाणु के बढ़ते संक्रमण को लेकर चिंता स्वाभाविक है। हालांकि सरकार ने समय रहते पूर्ण बंदी का एलान कर दिया था और लोगों ने काफी हद तक अनुशासन पूर्वक उसका पालन भी शुरू कर दिया। इसी वजह से प्रारंभिक चरण में कोरोना के संक्रमण में तेजी नहीं देखी गई। मगर कई जगह लोगों ने जरूरी सामान की खरीद के लिए इस हिदायत का पालन नहीं किया, तो श्रमिकों के बड़ी संख्या में पलायन से भी यह खतरा फैलने की आशंका बढ़ गई। फिर निजामुद्दीन में जमा तबलीगी जमात के लोगों में बड़े पैमाने पर कोरोना संक्रमण पाए जाने और उनके देश और विदेश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच जाने से इस संक्रमण के चक्र को तोड़ने में मदद नहीं मिल पाई। अब स्थिति है कि संक्रमण के मामले बहत तेजी से बढ़ रहे हैं और इस पर जल्दी काब पाना चुनौती बन गया है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें इस मामले में हर संभव प्रयास कर रही हैं और संक्रमितों की पहचान कर उन्हें अलग-थलग करने और चिकित्सा उपलब्ध कराने के प्रयास हो रहे हैं, पर आशंकाएं अभी थमी नहीं हैं। केंद्र ने राज्यों को राहत पैकेज की घोषणा भी कर दी है, पर वह पर्याप्त नहीं माना जा रहा है। प्रधानमंत्री के साथ बातचीत में मुख्यमंत्रियों ने अपने हिस्से के धन की मांग भी रखी। कोरोना का चक्र तोड़ने के लिए जरूरी है कि लोग परस्पर मेलजोल न बढ़ाएं, घरों में ही बंद रहें। इसके अलावा तेजी से जांच हो, संक्रमितों की पहचान हो और उन्हें चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। मगर अनेक जगहों से शिकायतें मिल रही हैं कि जांच की प्रक्रिया अपेक्षित गति से नहीं चल पा रही है, जिसके चलते संक्रमितों की पहचान नहीं हो पा रही और वे संक्रमण फैला रहे हैं। स्वास्थ्य केंद्रों पर जरूरी सुरक्षा उपकरण और साजो-सामान उपलब्ध न हो पाने की शिकायतें भी आ रही हैं। तबलीगी जमात के जो संक्रमित लोग देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच गए हैं, उनकी पूरी तरह पहचान नहीं हो पाई है, इस तरह अभी ठीक से पता नहीं लगाया जा पा रहा कि उनके संपर्क में कितने लोग आए और उनमें से कितने इस विषाणु से प्रभावित हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने नौ सौ साठ तबलीगियों को काली सूची में डाल दिया है, उनका वीजा रद्द कर दिया गया है, पर इतने से संक्रमण का दायरा फैलने से रोकना संभव नहीं माना जा रहा। सबसे बड़ा खतरा तब पैदा होगा, जब इस विषाणु का सामुदायिक संक्रमण शुरू हो जाएगा। इसी खतरे से सरकारें बचने का प्रयास कर रही हैं।पर अब जिस तरह आंकड़े बढ़ रहे हैं, उससे चिंता भी बढ़ने लगी है। अनुमान लगाया जा रहा था कि लोग अगर अनुशासन पूर्वक पूर्ण बंदी का पालन करेंगे, तो इक्कीस दिन बाद बंदी हटाने पर भी विचार किया जा सकता है, पर इसके संक्रमण का ग्राफ सपाट नहीं हो पा रहा। ऐसे में स्वाभाविक ही आम लोगों और सरकारों से इस दिशा में अधिक मुस्तैदी और सहयोग की अपेक्षा की जा रही है। कई जगहों पर लोग चिकित्सा कर्मियों के साथ बदसलूकी और उन पर हमले तक करते देखे गए हैं। उचित ही सरकारें ऐसे लोगों के खिलाफ सख्ती बरत रही हैं। पर इसके साथ ही संक्रमण को रोकने के लिए सरकारों से चिकित्सा सुविधाओं में बेहतरी और जांच आदि में तेजी लाने का प्रयास अब भी अपेक्षित है।